बुधवार, 8 सितंबर 2010

सपने.....

सपने , हर कोई देखता है,
मैं भी देखता हूं.
किसी के सपने ,
सच और पूरे होते हैं
तो किसी के बिखर ,
तितर - बितर हो जाते हैं.
जिनके सपने पूरे होते हैं,
उनके चेहरों पर हमेशा ,
मुस्कुराहट रहती है,
जिनके पूरे नहीं होते ,
उनके चेहरों पर हमेशा
झूठी मुस्कान होती है,
वे भविष्य में ,
सपनों की नगरी के ,
दरवाजे नहीं खोलना चाहते.
जो मिला , जितना मिला
उसे ही अपनी जीवन - पोटली में
ढोते रहना नियति मान लेते हैं.
पर, इनमें से कुछ लोगों को ,
मिल जाती हैं, जीवन में वो खुशियां

जिसकी कभी कल्पना भी,
नहीं की जा सकती थी.
मैं सोचता हूं ,
बाकी बचे लोगों का क्या दोष ,
जो
सपनाशब्द से डरते हैं ,
नम आंखे लिए जीवन गुजारा करते हैं




००००००

17 टिप्‍पणियां:

  1. मैं सोचता हूं ,
    बाकी बचे लोगों का क्या दोष ,
    जो “ सपना ” शब्द से डरते हैं ,
    नम आंखे लिए जीवन गुजारा करते हैं।
    Haan..kitna sahi kaha..sapna shabd se hee kayi baar dar lagta hai...shayad sapne bhi un aankhon me sajne se darte hain,jo unhen baar,baar gira ke todtee hain..

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  2. ठीक ख्याल हैं . दोष किसी का नहीं सपनो का है..

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  3. Dear Shamim Bhai,
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  4. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है! हार्दिक शुभकामनाएं!
    लघुकथा – शांति का दूत

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  5. जिनके सपने पूरे होते हैं,
    उनके चेहरों पर हमेशा ,
    मुस्कुराहट रहती है,
    जिनके पूरे नहीं होते ,
    उनके चेहरों पर हमेशा
    झूठी मुस्कान होती है,
    जीवन विरोधाभासों का संगम है ...और यही इसकी नियति है ..सुंदर भाव ..प्रेरक रचना , शुभकामनायें
    चलते -चलते पर आपका वागत है

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  6. अच्छी अभिव्यक्ति !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  7. शमीम भाई,

    आपकी यह कविता पूर्णतः अभिधात्मक है...सीधा-सपाट कथ्य...और उसकी अभिव्यक्ति भी ...बिना किसी लाग-लपेट के!

    एक बात विनम्रतापूर्वक कहूँगा कि ब्लॉग को कुछ ज़्यादा ही रंगारंग बना दिया है आपने...पढ़ने में बहुत असुविधा हुई!

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  8. सपने ज़रूर देखने चाहिए। नहीं देखेंगे तो पूरे कैसे होंगे।

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  9. आपको नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें...स्वीकार करें
    बहुत खूब ...अंदाज -ए- वयां पसंद आया

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  10. बहुत अच्छी रचना। बधाई।
    नए साल की आपको सपरिवार ढेरो बधाईयाँ !!!!

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  11. मानवीय मूल्यों को पोषित करने
    वाली प्रभावशाली....रचना...बधाई
    स्वीकारें।
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  12. शमीम जी!
    कविता भावनात्मक परंतु असफलता की वेदना को व्यक्त करने वाली लगी। संघर्ष और सफलता पाने की चाह संजोए आगे बढ़ना और निराशा की भावना न पनपने देना साहसी और कर्मठ व्यक्ति की पहचान है। बेहतर नहीं है हाल किसी का आपके हाल से।
    लेखन में निरंरता बनाए रखें। बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं।
    राजभाषा विकास परिषद
    नागपुर

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  13. मैं सोचता हूं ,
    बाकी बचे लोगों का क्या दोष ,
    जो “ सपना ” शब्द से डरते हैं ,
    नम आंखे लिए जीवन गुजारा करते हैं।

    wah! thanks.

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  14. यह सच लिखा है आपने ....सपने हर किसी को अछे लगें यह जरूरी तो नहीं !
    बढ़िया रचना के लिए बधाई आपको !

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