बुधवार, 8 सितंबर 2010

सपने.....

सपने , हर कोई देखता है,
मैं भी देखता हूं.
किसी के सपने ,
सच और पूरे होते हैं
तो किसी के बिखर ,
तितर - बितर हो जाते हैं.
जिनके सपने पूरे होते हैं,
उनके चेहरों पर हमेशा ,
मुस्कुराहट रहती है,
जिनके पूरे नहीं होते ,
उनके चेहरों पर हमेशा
झूठी मुस्कान होती है,
वे भविष्य में ,
सपनों की नगरी के ,
दरवाजे नहीं खोलना चाहते.
जो मिला , जितना मिला
उसे ही अपनी जीवन - पोटली में
ढोते रहना नियति मान लेते हैं.
पर, इनमें से कुछ लोगों को ,
मिल जाती हैं, जीवन में वो खुशियां

जिसकी कभी कल्पना भी,
नहीं की जा सकती थी.
मैं सोचता हूं ,
बाकी बचे लोगों का क्या दोष ,
जो
सपनाशब्द से डरते हैं ,
नम आंखे लिए जीवन गुजारा करते हैं




००००००