मंगलवार, 26 जनवरी 2010

भीड़ में एक चेहरा टकराया



बहुत दिनों के बाद , एक चेहरा,
स्मृति के किसी कोने से निकलकर,
दिल के आसमां पर छाया,
जब भीड़ में एक चेहरा टकराया ।

देखकर उसका चेहरा वर्षों बाद….
आंखे हुई नम, खिल उठा रोम-रोम,
ओठों ने भी गीत हर्ष का गाया,
जब भीड़ में एक चेहरा टकराया ।

कदम बिन रुके आगे बढ़ चले ,
सोचने का वक्‍त न था,क्या है रिश्ता ?
पर, उसने भी तो पीछे देख, मुस्कुराया ,
जब भीड़ में एक चेहरा टकराया ।




२६ जनवरी २०१०
गणतंत्र दिवस क
शुभ कामनाएं

शनिवार, 9 जनवरी 2010

“ आसमान के तारे ”


समाचार पत्र में एड आया था- एक नई फिल्‍म के लिए चार कलाकारों की तलाश।” आडिशन मुंबई में था । राकेश , संजीव , सुजेन और सलमा अपने - अपने घर में एक मैसेज छोडकर निकल पड़े । चारों जानते थे कि अगर वे अपने माता पिता को इस बारे में बताएंगे तो वे उन्‍हें मुंबई जाने और फिल्‍मों में काम करने की अनुमति नहीं देंगे ।
राकेश , संजीव , सुजेन और सलमा चारों अच्‍छे दोस्‍त थे । एक ही कॉलेज से पढ़ाई की थी चारों ने । चारों ही मझे हुए कलाकार थे । नेशनल ड्रामा कंपिटिशन के दौरान इनमें दोस्ती के बीज पनपे थे । राकेश सुजेन को और संजीव सलमा को अपना लाइफ पार्टनर मान चुके थे लेकिन निर्णय लिया था कि अपने को प्रमाणित करने के बाद ही शादी करेंगे।
चारों मुंबई पहुंचे, आडिशन हुआ । चारों ही उस फिल्म के लिए चुन लिए गए । फिल्‍म “आसमान के तारे ” रिलीज हुई , । एक हफ्ते तक चारों समाचार पत्र के पेज 3 में छाए रहे । मगर फिल्म पिट गई । लो बजट की फिल्म करोडों में बन नही फिल्‍मों के आगे टिक न सकी ।
कुछ पैसा चारों कलाकारों के हाथ आ गया था । मुंबई के पास एक फ्लैट खरीदकर चारों उसी में रहने लगे । घरवालों ने उन्‍हें घर में प्रवेश नहीं करने दिया । मुहल्‍ले वालों ने भी साथ नहीं दिया । फिल्म पिटने के बाद मीडियावालों ने उनसे मुंह मोड़ लिया । इसी तरह कुछ माह बीत गए ।
एक शाम, नेशनल फिल्‍म अवार्ड की घोषणा हुई । फिल्‍म “आसमान के तारे ” को वर्ष का सर्वश्रेष्‍ठ फिल्‍म घोषित किया गया । फिर क्या था । मीडियावाले - पत्रकार , रिपोर्टर , परिवार के सदस्य , नये फैन सभी उन चारों को ढूंढते हुए उनके आवास पर पहुंचे । घर अंदर से बंद था । दरवान ने उन्हें पिछले तीन दिनों से घर से निकलते नहीं देखा था । बाहर , आसमान में चार तारे टिमटिमाते हुए नजर आ रहे थे ।

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रविवार, 3 जनवरी 2010

एक फूल

कार्यालय में नए अधिकारी कार्यभार ग्रहण कर चुके थे । पहली तारीख थी और वह भी नव वर्ष का अवसर । सारे कर्मचारी एक - एक करके उन्‍हें शुभकामनाएं देने पहुंच रहे थे । कोई गुलदस्ता लेकर , कोई कार्ड लेकर तो कोई खाली हाथ साहब के कमरे में घुसता और थोडी देर बाद मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर बाहर आ रहा था ।

सभी बाहर आकर यह बताने में व्यस्त थे कि साहब ने मुझे बैठने के लिए कहा , चाय के लिए पूछा और खड़े होकर हाथ भी मिलाया । अब केवल श्यामलाल जी और रमेश बचे थे ।

श्यामलाल जी मौका देखते ही अंदर पहुंचे । साहब को गुलदस्ता भेंट किया । साहब ने खड़े होकर उनसे हाथ मिलाया । चाय की पेशकश को श्यामलाल जी ठुकरा न पाए । बाहर आकर उन्होंने यह किस्सा हर्ष के साथ सबको बताया भी ।

रमेश को नौकरी पर लगे दो साल हो चुके थे । वह कार्यालय का एकमात्र चपरासी था । इसलिए उसे गप मारने का कम समय मिलता था। उसे अपने काम में व्यस्त रहना अच्छा लगता था । शाम हो चुकी थी । साहब घर लौटने की तैयारी कर रहे थे । सभी कर्मचारी कतार में हाथ जोड़े खड़े थे । साहब ने बाहर निकलते ही रमेश को देखा । वह भी हाथ जोड़े खड़ा था । साहब ने उसे विश किया , उससे स्वयं हाथ मिलाया। रमेश की आंखें नम हो गई । साहब के हाथ में एक फूल था। वे उसे रमेश की शर्ट में लगाते हुए लिफ्ट की ओर चल पड़े ।

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आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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