रविवार, 13 दिसंबर 2009

आज़ादी

स्टेशन पर सुबह से ही भीड़ लगी थी । चारों ओर चहल-पहल थी । स्वतंत्रता दिवस मनाया जा रहा था । छोटी पार्टी के कार्यकर्ता तथा क्लबवाले आयोजन में व्यस्त थे । चन्दु काका अपनी छोटी सी दुकान पर पुरियां छानने में व्यस्त थे । उसी स्टेशन के किनारे झोपडी में रहने वाला बाबू भिखारी का लडका चुन्नू रोज की तरह डस्टबीन से पत्ते निकालकर उसमें बची सब्जी निकालने में व्यस्त था । राहगीर जो नियमित रूप से चन्दु काका की दुकान की बनी पुरियां खाते थे , आज भी मजे के साथ पुरियां खा रहे थे ।

माईक से हैलो टेस्टिंग.. वन..टू..थ्री......की आवाजें आनी शुरू हो गई थी । तभी कुछ लोग हाथ में झंड़ा लिए स्टेशन परिसर में आए औऱ वहां चल रहे आयोजन को बंद कराने लगे । किसी ने बीच से एक-दो पत्थर फेंका । फिर क्या था, भगदड़ मच गई । स्त्री-पुरूष सभी भागने लगे । पत्थर की वर्षा होने लगी । चन्दु काका दुकान छोड़ भागे । चुन्नू भी कुछ पत्ते समेटकर अपने घर भागा ।

करीब एक घंटे बाद चुन्नू घर से निकला । देखकर खुश हुआ कि माहौल शांत और खुशनुमा हो चुका है । माईक के सामने खड़े सफेद कुर्ता-पायजामा पहने साहब भाषण दे रहे हैं । भाषण के बाद लड्डू बांटा जाना था , इसलिए भीड़ इकठ्ठी हो चुकी थी । चन्दु काका का दुकान टूट चुका था । पुरियां और सब्जी बिखरी पड़ी थी , चूल्हा अब चूल्हा नहीं रहा । चुन्नू ने लड्डू लिया और माईक से आती आवाज – ‘ अपनी आज़ादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं.......... ’ गुनगुनाता हुआ घर की ओर चल दिया ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. आंधी की आशंका, पत्थर का डर है
    बालू की नींव और शीशे का घर है
    उपवन को थोड़ी बारीकी से देखो तो
    हरियाली के भीतर बैठा पतझर है ।
    बहुत अच्छी लघुकथा। बधाई। ऐसे ही नियमित पोस्ट करते रहें।

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  2. धन्यवाद सर । प्रोत्साहित करने के लिए आपका आभार ।

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  3. एक अच्छी लघु कथा प्रस्तुत करने के लिए आपको बधाई ।

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  4. लघुकथा वास्तविकता से अवगत कराती है। लिखने हेतु बधाई ।

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  5. वाकई आज के परिवेश को दर्शाती यह लघुकथा सुंदर बन पडी है।

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