प्रसाद सरकारी कार्यालय में कार्यरत थे । कार्यालय में उनका बडा मान सम्मान था । उनके पिताजी एक जमाने में शहर के धनी लोगों में गिने जाते थे । प्रसाद भी कुछ साल पहले तक ऐशोआराम की जिंदगी बिता रहे थे । पर जैसे सूर्य को भी ग्रहण लगता है, उसी प्रकार प्रसाद की खुशियों की ग्रहण लग गया ।
अपने दो बच्चों और पत्नी के साथ अच्छी तरह जिंदगी बिता रहे थे प्रसाद । लेकिन कार्यालय में बुरी संगति का शिकार हुए । एक पियकक्ड दोस्त की संगति में उन्होंने भी पीना शुरू कर दिया । घर देर रात पहुंचना, पत्नी से झगडा करना , बच्चों को बात -बात पर पिटना साथ ही कार्यालय में काम न करना उनकी आदत बन चुकी थी । महीने भर की कमाई वे बार में ही लुटा देते थे ।
कार्यालय में उनके अधिकारी देव बाबू उनसे रोजाना चाय मंगाया करते थे । वे प्रतिदिन दस रूपये का नोट निकालकर देते और दिन में दो बार चाय मंगवाकर पीते थे और सहकर्मियों को भी पिलाते थे । कभी शेष बचे पैसों के बारे में नहीं पूछा । उनके सहकर्मी रमेश बाबू , सोहन बाबू , दास बाबू ने उन्हें अनेक बार समझाया कि वे पियक्कड़ प्रसाद पर भरोसा न करें । देव बाबू हंसते पर कुछ न कहते ।
एक सप्ताह हो गए प्रसाद कार्यालय नहीं आ रहे थे । तरह - तरह की बातें शुरू हो गई थी । स्थिति यह हो गई कि देव बाबू के सामने प्रसाद का सस्पेंशन लेटर हस्ताक्षर के लिए पडा था । दोपहर दो बजे अचानक प्रसाद पधारे । उन्हें देखकर सभी दंग रह गए ।
प्रसाद सीधे देव बाबू के पास पहुंचे । नमस्कार किया, चाय का फ्लास्क उठाया और कहा साहब चाय ले आता हूं । देव बाबू ने बिना कुछ कहे जेब से दस का नोट निकाला और प्रसाद को देने के लिए हाथ बढ़ाया । प्रसाद ने बस हाथ जोड दिया, नोट लिया नहीं। आगे बोले – “साहब आज मैं चाय पिलाता हूं । ”
उन्होंने अलमारी खोली , उसमें से एक छोटा बक्सा निकाला । उसमें से कुछ सिक्के निकालते हुए बोले – “ साहब आप मुझे चाय के लिए हमेशा दस रूपये का नोट देते रहे । हमेशा आठ रूपये की चाय में लाता था । बचे पैसे मैं अपने पास रख लेता था । आठ सौ रूपये जमा हो गए हैं । मैंने सोचा था कि जब हजार हो जाएंगे तो पूरे सेक्शन की पार्टी होगी । पिछले एक सप्ताह से साहब मेरा लडका बहुत बीमार है । उसकी दवाईयों के लिए मुझे पांच सौ रूपयों की आवश्यकता है । अगर आप अनुमति देंगे ........... और हां मैं यह पैसे अगले माह लौटा दूंगा । साहब मैंने वादा किया है पत्नी से ....... मैंने पीना छोड दिया हे । मैं अपने परिवार को खोना नहीं चाहता । ”
देव बाबू ने बस स्वीकृति देते हुए अपना सर हिलाया और सस्पेंशन लेटर की तरफ देखने लगे। सेक्शन के लोग एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। प्रसाद चाय लाने के लिए कैंटीन चल दिए ।
अपने दो बच्चों और पत्नी के साथ अच्छी तरह जिंदगी बिता रहे थे प्रसाद । लेकिन कार्यालय में बुरी संगति का शिकार हुए । एक पियकक्ड दोस्त की संगति में उन्होंने भी पीना शुरू कर दिया । घर देर रात पहुंचना, पत्नी से झगडा करना , बच्चों को बात -बात पर पिटना साथ ही कार्यालय में काम न करना उनकी आदत बन चुकी थी । महीने भर की कमाई वे बार में ही लुटा देते थे ।
कार्यालय में उनके अधिकारी देव बाबू उनसे रोजाना चाय मंगाया करते थे । वे प्रतिदिन दस रूपये का नोट निकालकर देते और दिन में दो बार चाय मंगवाकर पीते थे और सहकर्मियों को भी पिलाते थे । कभी शेष बचे पैसों के बारे में नहीं पूछा । उनके सहकर्मी रमेश बाबू , सोहन बाबू , दास बाबू ने उन्हें अनेक बार समझाया कि वे पियक्कड़ प्रसाद पर भरोसा न करें । देव बाबू हंसते पर कुछ न कहते ।
एक सप्ताह हो गए प्रसाद कार्यालय नहीं आ रहे थे । तरह - तरह की बातें शुरू हो गई थी । स्थिति यह हो गई कि देव बाबू के सामने प्रसाद का सस्पेंशन लेटर हस्ताक्षर के लिए पडा था । दोपहर दो बजे अचानक प्रसाद पधारे । उन्हें देखकर सभी दंग रह गए ।
प्रसाद सीधे देव बाबू के पास पहुंचे । नमस्कार किया, चाय का फ्लास्क उठाया और कहा साहब चाय ले आता हूं । देव बाबू ने बिना कुछ कहे जेब से दस का नोट निकाला और प्रसाद को देने के लिए हाथ बढ़ाया । प्रसाद ने बस हाथ जोड दिया, नोट लिया नहीं। आगे बोले – “साहब आज मैं चाय पिलाता हूं । ”
उन्होंने अलमारी खोली , उसमें से एक छोटा बक्सा निकाला । उसमें से कुछ सिक्के निकालते हुए बोले – “ साहब आप मुझे चाय के लिए हमेशा दस रूपये का नोट देते रहे । हमेशा आठ रूपये की चाय में लाता था । बचे पैसे मैं अपने पास रख लेता था । आठ सौ रूपये जमा हो गए हैं । मैंने सोचा था कि जब हजार हो जाएंगे तो पूरे सेक्शन की पार्टी होगी । पिछले एक सप्ताह से साहब मेरा लडका बहुत बीमार है । उसकी दवाईयों के लिए मुझे पांच सौ रूपयों की आवश्यकता है । अगर आप अनुमति देंगे ........... और हां मैं यह पैसे अगले माह लौटा दूंगा । साहब मैंने वादा किया है पत्नी से ....... मैंने पीना छोड दिया हे । मैं अपने परिवार को खोना नहीं चाहता । ”
देव बाबू ने बस स्वीकृति देते हुए अपना सर हिलाया और सस्पेंशन लेटर की तरफ देखने लगे। सेक्शन के लोग एक दूसरे का मुंह देख रहे थे। प्रसाद चाय लाने के लिए कैंटीन चल दिए ।
AAchi laghu katha.Badhai..
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना। बधाई। ऐसे ही नियमित लिखते रहें। बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
काई बार बुरी संगत में व्यक्ति पड़ जाता है तो उसे सीधा नकार देना नहीं चाहीए..यह बात शायद देव बाबू समझते थे.और मेरे ख्याल से उन्होने प्रसाद को सुधरने का मौका दे दिया होगा और उसे ज़रूरत के ५०० रुप्य्ये भी.प्रसाद ने भी एक सही निर्णय लिया .भावपूर्ण अच्छी कहानी.
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत अच्छी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंआने वाला साल मंगलमय हो।
nice
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघु कथा ।
जवाब देंहटाएंसुंदर कथा. नव वर्ष की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंReally nice story .
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखते हैं आप ......छोटी सी लघु कथा के द्वारा बहुत कुछ कह गए आप .....!!
जवाब देंहटाएंis sundar lekh ke saath aapko naye varsh ki shubhkaamnaaye
जवाब देंहटाएंEk bohot badhi sikh deti ek choti si kahani...
जवाब देंहटाएंbohot acchi lagi...
shubhkamnaye
नववर्ष मंगलमय हो !!
जवाब देंहटाएंखुबसूरत रचना आभार
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
एक सार्थक बोध कथा है.
जवाब देंहटाएंअब कुछ संकल्प तो लेने ही होंगे...
नववर्ष की बधाई एवं शुभकामनाओं सहित
- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'