मांग का सिन्दुर
रहने को जगह ना मिला तो बेचारी मोनी मौसी ने स्टेशन के एक कोने में अपनी छोटी सी चारपाई डाल ली , और पिछ्ले कुछ सालों से वही उसका आशियां था . करती भी क्या, क्या किसी गरीब का अपना घर होता है ?
मोनी मौसी इस घर में अपनी बेटी सुशीला के साथ रहती थी . पति दूसरी शादी करके नौ साल पहले ही इन्हें छोड चुका था . स्टेशन से आने – जाने वाले लोग इन्हें कुछ पैसा दे देते थे , इससे इन्हें तीन वक्त का खाना नसीब हो ही जाता था.
एक दिन एक लोकल ट्रेन आकर स्टेशन पर रुकी . सुशीला मोनी मौसी की गोद में सर रखकर लेटी थी. उसने देखा कि खिडकी के पास एक खुबसूरत लडकी बैठी है. उसके हाथों में सोने के कंगन हैं . कानों में सोने की बनी बालियां हैं . लडकी ने बनारसी साडी पहन रखी है . उसके माथे और मांग पर लगा लाल सिन्दुर उसकी सुन्दरता और आभा बढा रहे थे. जब तक ट्रेन छुट न गई सुशीला उस लडकी को निहारती रही.
सुशीला के मन में कई भाव और विचार गोते लगाने लगे . उसने मां का हाथ पकडा और सकुचाते हुए पूछा -“ मां मैं दुल्हन कब बनूंगी. मां, क्या मैं भी दुल्हन बनकर ऐसी ही दिखूंगी . तुमने देखा उसकी मांग में सिन्दुर लगा था ........ पैसा वाली थी, कितनी अच्छी लग रही थी न.... ” . मोनी मौसी ने कोई जवाब नहीं दिया. एक हाथ से सुशीला का सर सहलाया और दूसरे हाथ से मिले हुए पैसे गिनने लगी .
होली की बधाई और शुभकामनायें
होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबहुत भाव भरी कथा।
जवाब देंहटाएंहैप्पी होली।
sundar sawal uthati hui rachna ,holi ki dhero badhaiyaan
जवाब देंहटाएंशमीम भाई
जवाब देंहटाएंमैं तो पहली बार आपके ब्लॉग पर आया मज़ा आया ....देर से आने के लिए खेद...........! लघु कथा अगर अच्छी बन जाये तो बहुत प्रभावी होती है....आपकी रचना प्रभावी है....होली की आपको भी शुभकामनायें
कहानी अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक ह्रदय स्पर्शी लघु कथा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी यह लघु कथा,यथार्थ का सुन्दर चित्रण .
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रसंग....इस कथा में व्यापक अर्थ विस्तार देता है.आया शायद पहली बार हूँ आपके ब्लॉग पर ...लेकिन आपके लेखन ने प्रभावित किया.
जवाब देंहटाएंaapaki ye laghu katha bahut hi gahare bhav apana me samette huye hai.
जवाब देंहटाएंpoonam
बेहतरीन प्रस्तुति...सुन्दर कथ्य...बधाई.
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